सबसे पहले हम आपको बता दे कि पारिवारिक विधि यानि कि धर्म परिवार रीति रिवाज से संबन्धित विधि से है।यह परिवार पर लागू होता है यह समाज का एक रूप है।
समाज का निर्माण परिवार से ही होता है यही से संस्कार प्राप्त होता है और यही से समाज का संस्कार का निर्माण होता है। और यही से संसार कि नीव राखी जाती है।
परिवार भी पित्र प्रधान और मात प्रधान होता है। जहा परिवार मे पिता के हाथ मे घर कि बागडोर होती है वह पित्र प्रधान होता है जैसे परिवार ओ दादा जी चला रहे होते है और जहा पर माँ का दबदबा होता है वह मात प्रधान परिवार कहलाता है।
जहा परिवार मे कई लोग होते है और सबका सबसे कुछ न कुछ संबंध होता है। उनही संबंधो के बीच आपस मे किसी न किसी बात को लेकर झगड़ा या लढाई होती है तो उसके लिए यह पारिवारिक न्यायालय मे जाते है यह जिला न्यायालय से अलग होता है।
अब हम जानते है कि पारिवारिक नयायालय मे क्या क्या आता है। सबसे पहले इसमे विवाह आता है। विवाह संबंधी सभी बाते इसमे आती है जैसे विवाह करना ,तलाक लेना ,बच्चा गोद लेना ,बच्चा को हिस्सा देना ,बच्चो का संरक्षण आदि सभी इसमे आते है।
यदि परिवार का कोई सदस्य कि मृतु हो जाती है तो संपत्ति कैसे बटेंगी कितना हिस्सा होगा। किसको कितना हिस्सा मिलेगा यह सब पारिवारिक विधि के अंतर्गत आता है।
सभी के पारिवारिक विधि अलग अलग होता है सभी धर्म के पारिवारिक विधि अलग अलग होते है और इसका निपटारा कुटुंब नयायालय यानि कि पारिवारिक नयायालय मे होता है।
इसके माध्यम से हम आपको अलग अलग धर्मो से संबंधित उनके कानून को संछेप मे बताने का प्रयास करेंगे।
ईसाई कानून
आज हम आपको ईसाई कानून के बारे मे बताने का प्रयास करेंगे। जिसकी उत्पति 52 वी ईसा मे हुई थी। कहा जाता है कि इनकी उत्पति मलाबार मे एक ईसाई समुदाय को मालनकर जेकोटिन सीरियन से संबन्धित माना जाता है कहा जाता है की ईसा के एक अनुयाय्यी ने वह चर्च की स्थापना की थी। कहा जाता है की ये हुदयान केनान से संबन्धित माने जाते है और इनकी सभी विधीय इसके अनुरूप है। केलल और भारत मे कई अन्य प्रकार के सेरियान उपलभ्ध है।
ऐसा कहा जा सकता है की सीरियन ईसाइयो के रीति रिवाज रोमन कथोलिक चर्च से भिन्न है। इस चर्च के द्वारा विवाह,ताक,उत्तराधिकारी,विरासत आदि सभी प्रकार के रीतियो के नियम बनाए गए थे इसको गिरजा कानून संहिता के नाम से भी जाना जाता है।
इतना सब होने के बाद भी सीरियन ईसाइयो ने अपने धर्म का पालन बंद नही किया वह ओरियंटल चर्च के अनुसार कार्य करते है।
ब्रिटिश काल मे 2 विधानों को आधुनिक बनाया गया जो की भारतीय तलाक अधिनियम 1869, भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम 1872 ईसाइयो के विवाह को संस्कारिक माना गया है और वह तलाक की अनुमति नही देता है।
ईसाई गिरजा कानून द्वारा विवाह के नियमो को मानने के लिए बाध्य होते है। और वह उसका पालन करते है। रोमन चर्च के अनुसार विवाह की आयु लड़के की 20 वर्ष और लड़की की 14 वर्ष से अधिक है।
उत्तराधिकारी नियम भी ईसाइयो के अपने धर्म रीति रिवाज के अनुसार ही किया जाता है। इसके अनुसार मृतु के बाद उसके बड़े लड़के को संपत्ति मिलती है। पति की मृतु के बाद पत्नी को संपत्ति का कोई हिस्सा नही मिलता है। दत्तक पुत्र का यह वर्ग अनुशरण करता है। भारत मे हिन्दू रीति रिवाजो को ईसाइयो ने भी अपना लिया है और उस अनुसार कार्य करते है।
ईसाई भारत के हर भाग मे निवास करते है। और वह भारत की परम्पराओ के अनुसार अपने नियमो का पालन करते है।
पारसी कानून मे रीति रिवाजो की भूमिका-
ऐसा कहा जाता है की पारसी आप्रवासी है और भाग कर भारत आए थे। वह ऐसे रीति रिवाजो को अपना लिया जहा उनको पनाह मिली थी। यह विभिन्न प्रकार के धर्मो का अनुशरण करते है।
यह रीति धर्म से सुरू होकर मृतु तक चलती है। जब शिशु का जन्म होता है तब जोरस्टियन धरम के अनुसार नवज्योति की रीति मे प्रवेश किया जाता है। इनके विवाह शाम के बाद ही होते है। वह विवाह के लिए ववेस्टा धार्मिक ग्रंथ का अनुशरण करते है।
विवाह के समय पादरी जिसको वह दस्तूक कहते है उनका विवाह करता है। दूल्हा दुल्हन के हथेवेरा रीति से विवाह को सम्पन्न कराया जाता है। और अपनी प्रार्थना को पूरा करते हुए वह विवाह बंधन मे बांधते है। जब पादरी विवाह को प्रमाणित करते है तभी विवाह को सम्पन्न माना जाता है।
पारसी यह मानते है की कोई व्यक्ति जन्म से ही पारसी हो सकता है अतः कोई हिन्दू या कोई अन्य धर्म अगर धर्म परिवर्तन करता है तो उसको इंका लाभ नही मिलेगा।
यदि कोई लड़की या कोई लड़का गैर पारसी से विवाह करता है तो उसको समाज और धर्म से अलग माना जाएगा और उसको कोई सामाजिक लाभ नही दिया जाएगा। जैसे जे आर टाटा ने एक फ्रेंच महिला से विवाह किया था तो पारसी धर्म अपनाने के बाद भी उस महिला से जन्मे बच्चे को पारसी समाज ने नही अपनाया और उनको पारसी के किसी धार्मिक स्थल मे प्रवेश की अनुमति नही दी गयी।
परसियों मे दत्तक पुत्र को नामित करने की परंपरा है। इसका कोई प्रत्याछ प्रमाण तो नही है। पारसी समुदाय की दत्तक नीति और सबसे अलग है। इसमे दत्तक पुत्र को अधिकार तो नही मिलता परंतु उसपर दायित्व डालने के रूप मे देखा गया है। इसके अनुसार पिता की मृतु के बाद दत्तक पुत्र उनका अंतिम संस्कार करेगा जिससे उनकी आत्मा को शांति मिल सके।
उत्तराधिकारी के रूप मे यदि किसी म्रतव्यक्ति का कोई उत्तराधिकारी नही है तो उसकी संपत्ति पंचायत के पास चली जाती थी। जो समय समय पर परसियों को सहायता प्रदान करती थी यह निकाय टावर ऑफ साइलेंस की देख रेख मे बनती थी। जो की परसियों का अंतिम विश्राम स्थल है। प्रेसीडेंके क्षेत्र मे रहने वाले लोग अङ्ग्रेज़ी कानून को मानते थे वह इन रीति रिवाजो को नही मानते थे।
पारसी महिलाओ को मृतु के बाद उसको केवल भरण पोषण भर का धन मिलता है। इसके अनुसार म्रत व्यक्ति की पुत्री को पुत्र के समान ही अधिकार प्रदान किया जाता है