हिन्दू उत्तराधिकारी अधिनियम – यह अधिनियम 1925 मे लागू हुआ था। इसके अंतर्गत हिन्दू उत्तराधिकारी के बारे मे बताया गया है। इसमे हिन्दू उत्तराधिकारी से संबंधित प्रावधानों का वर्णन किया गया है। इसमे धारा 4 मे बताया गया है की यह हिन्दू उत्तराधिकारी वहा खत्म हो जायेगा जो हिन्दू होने के किसी भी उप बंध को खंडित कर देगा या उपबंधो मे से किसी भी एक उप बंध को नही मानेगी तो यह प्रावधान भी उसपर लागू नही होगा।
एक हिन्दू के मरने के उपरांत उसके करीबी रिश्तेदार उसकी संपत्ति का उत्तराधिकारी होता है। वह उसकी संपत्ति पर अपना अधिकार रख सकता है।
धारा 5 के अनुसार ऐसा विवाह अधिनियम जो विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत आता है और उसके अनुरूप उत्तराधिकारी अधिनियम के उपबंधो को लागू किया जाता है इसके अंतर्गत आता है।
धारा 6 सहदायिकी को बताता है। इसके अंतर्गत पिता पुत्र पुत्री और पौत्र आते है। यह सब सहदायिकी कहलाते हैं। सह दायिकी उत्तराधिकारी का सबसे छोटा इकाई है। इसके अंतर्गत पुत्री का भी सहदायिकी पुत्र के समान होती है। वर्ष 2005 से पहले पुत्री को बराबर का हक नही मिलता था परंतु 2005 के बाद हुए संसोधन मे पुत्री को पिता की संपति मे बेटे के बराबर ही अधिकार प्राप्त कर सकती है।
अब बेटी पिता की संम्पति मे अपना हिस्सा मांग सकती है। तथा उसका दायित्व पुत्र की भाती ही हो गया है। परंतु अभी भी पुत्री के पुत्र या पुत्री को इसमे शामिल नही किया गया है। सिर्फ पुत्री ही पिता की संपत्ति मे अधिकार प्राप्त कर सकती है।
धारा 6 सहदायिकी संपत्ति का न्यायगमन –
इसमे यह बताया गया है की सह दायिकी संपति का नियागमन कैसे होगा। यह मिताक्षरा के अनुसार लागू हुए हिंदुओ पर लागू होता है। इसके अनुसार भी पुत्री पुत्र के समान ही अधिकार रखती है।और पुत्री भी पुत्र के समान ही समान दायित्व रखती है। यदि पुत्री चाहे तो अपनी संपति बेच सकती है। और पुत्री अपने संपत्ति पर होने वाले व्यय को देने की अधिकारी है।
यदि सम्पति का विभाजन 2004 से पहले हो गया है तो पुत्री उसमे अधिकार नही ले सकती है। वैसे तो पुत्री का जन्म से अधिकार होता है। परंतु 2005 के संशोधन के बाद उसका समान दायित्व भी जुड़ गया।
मिताक्षरा के अनुसार यदि कर्ता की मृत्यु अधिनियम के संशोधन के पहले हो गया है तो उसका बटवारा सयुंक्त परिवार अधिनियम द्वारा वशियत या नार्वशियत के अनुसार होगा। न कि उत्तरजीवी और सहभागिता अधिनियम के द्वारा।
इसके अनुसार पुत्री को भी पुत्र के बराबर का अधिकार प्राप्त होता है। वर्ग 2 के वंसज इसको प्राप्त करने के अधिकारी नही होते है। पुत्री के बच्चे उसके लिए अधिकारी नही होते है।
इसके अनुसार पूर्व मृत्यु पुत्र के लिए इस प्रकार बटवारा किया जाए की संपति विधवा और उसकी अन्य विधवाओ के बीच तथा उसकी पुत्री और पुत्रो मे बराबर का बटवारा किया जाना चाहिए।
यदि कोई पुत्र की मृत्यु हो गयी है तो उसका उत्तराधिकारी उसका हकदार होगा परंतु उसके लिए पहले ग्रुप a मे बटवारा हो जायेगा फिर उसका नंबर आता है।
वर्ग b धारा 11 के अनुसार बटवारा कर संपत्ति प्राप्त करते हैं।
धारा 8
पुरुष की संपत्ति का बटवारा
इसमे यह बताया गया है कि पुरूष यदि बिना वसीयत लिखे ही मर जाता है तो उसकी संपत्ति का बटवारा इस प्रकार होगा।
निर्वासित की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पहले अनुसूची के वर्ग 1 मे बाटा जाता है। अब आपको बताये कि अनु सूची 1 मे कौन कौन आयेगा। वर्ग 1 मे माता ,विधवा , पुत्र, पुत्री , और पुत्र का लड़का और लड़की आदि शामिल है।
धारा 8 ग के अनुसार यदि वर्ग 1 व वर्ग 2 मे कोई उत्तराधिकारी नही है तो यह गोत्रजो को चला जाता है। धारा 12 और धारा 13 गोत्रजो को परिभाषित करती हैं। धारा 13 के अनुसार यह सब छोटी छोटी इकाई है जो सबको जोड़े रखती है। यह डिग्री के संगठन को बताती है चाहे वह उपर से हो या नीचे से हो।
त ने आ जो उसका पहला पति था उसको छोड़कर व से शादी कर ली ज आ का पुत्र था त की मृत्यु के बाद ज आ की प्रोपर्टी का उत्तराधिकारी होगा। न कि त के और पुत्र। अनु सूची 1 मे सबसे पहले वितरण किया जाता है वर्ग 1 मे जब कोई नही होता है तो वर्ग 2 मे पहली पक्ति मे संपत्ति का वितरण होता है। और वर्ग 2 मे भी जब कोई नही होता तो यह गोत्ज को जाता है। और गोत्रज मे भी कोई नही होता तो अन्य बंधुओं को चला जाता है।
धारा 11 डिग्रियों की संगणना –
इसमे उत्तराधिकारी से संबन्धित ऊपरी तथा निचली दोनों से डिग्रियों की संगडना करना आवश्यक होता है।
गोत्रजों और बंधुओ के बीच उत्तराधिकारियो के नियोजन के प्रयोजन के लिए डिग्रियों की जानकारी होना आवश्यक है।
निर्वासिता के अनुसार ऊपरी और निचली डिग्रियों की गणना की जाएगी। और इससे संबन्धित प्रतेय्क पीढ़ी एक डिग्री धारण करती है।
धारा 14 हिन्दू स्त्री की अर्जित की गयी संपत्ति उसकी अपनी संपत्ति होगी-
हिन्दू स्त्री चाहे वह धन दान के रूप मे चाहे कमा कर चाहे विवाह से पूर्व या विवाह के बाद अर्जित की है।उसके द्वारा पूर्व स्वामी के तौर पर धारण की जाती है। चाहे वह संपत्ति कैसे भी क्यो ण हो चाहे वह कैसे भी धारण की गयी हो। दान ,बिल या डिक्री जो सिविल न्यायालय द्वारा अर्जित की गयी है इसमे सम्मलित नही होती है।
धारा 16 हिन्दू नारी की उत्तराधिकारी नियम –
इसके अंतर्गत निम्न को शामिल किया जाता है।
हिन्दू नारी जो निर्वासिता के रूप मे मारी है उसकी सम्पत्ति धारा 16 में दिए गए नियमों के अनुसार बाटी जाएगी
सबसे पहले ये पुत्रों और पुत्रियों और पति को दी जाएगी।
फिर उसके बाद यह पति के वारिसों को दी जा सकती है।
उसके बाद यह हिन्दू नारी के माता और पिता को दिया जा सकता है।
और उसके बाद यह पिता के वारिसों को दिया जा सकता है।
उसके बाद यह माता के वारिसों को दिया जाता है।
इस प्रकार हमने आपको इस पोस्ट के माध्यम से उत्तराधिकार अधिनियम के धारा 1 से 16 तक समझाने का प्रयास किया है यदि कोई गलती हुई हो या आप इसमे और कुछ जोड़ना चाहते है या इससे संबंधित आपका कोई सुझाव हो तो आप हमे अवश्य सूचित करे।