अपकृत्य विधि के अनुसार मिथ्या बंदीकरण या मिथ्या कारावास ( false imprisonment ) क्या होता है?

मिथ्या बंदीकरण की अर्थ और परिभाषा तथा महत्व का विस्तृत वर्णन –

जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे अप्कृत्य विधि संबन्धित कई पोस्ट का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की पोस्ट समझने मे आसानी होगी।

मिथ्या बंदीकरण या मिथ्या कारावास ( false imprisonment )-

यदि किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता पर बिना किसी औचित्य के रोक लगाया जाता है तो वह मिथ्या बंदीकरण है। इसमे क्षतिपूर्ति की कार्यवाही का विशेष महत्व है।

मिथ्या बंदीकरण या मिथ्या कारावास ( false imprisonment )की परिभाषा –

“मिथ्या-बन्दीकरण एक ऐसा कार्य है। जिसके आधार पर किसी स्वतंत्र व्यक्ति की स्वतंत्रता को पूर्णरूप से रुकावट डाली जाती है। तथा इस प्रकार की रुकावट को डालने के लिए सम्बन्धित व्यक्ति अथवा प्राधिकारी को कोई विधिक औचित्य नही प्राप्त होता है। इसके अनुसार यह कहा जा सकता है कि किसी एक व्यक्ति द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति की स्वतंत्रता पर बलपूर्वक इस प्रकार से पूर्ण रुकावट या बाधा उत्पन्न कर दी जाय जिसके लिये कानून कोई इजाजत न देता हो।‘’

कब मिथ्या बंदीकरण या मिथ्या कारावास ( false imprisonment ) नही माना जाएगा-

वालेन्ट नान फिट इंजुरिया (volenty Non Fit Injuria) के सिद्धांत के अनुरूप हिरासत के लिये वादी सहमत हो तो वाद में मिथ्या बन्दीकरण का मामला मान्य नही होता है।

यदि वादी को ऐसी किसी ऐसे स्थिति में बंदी बना लिया जाता है। जिसमे वह अपने लिये अथवा दूसरों के लिए घातक सिद्ध हो सकता है तो उस दशा में मिथ्या बन्दीकरण का कोई मामला मान्य न होगा।

यदि प्रतिवादी अपने पैतृक अधिकार के अन्तर्गत अतिक्रमण को रोकने के लिए वादी को बंदी बना लेता है। तो वह मिथ्या बन्दीकरण का मामला न होगा।
यदि प्रतिवादी अपने पैतृक अथवा अन्य अधिकारों के अन्तर्गत अतिक्रमण को रोकने के लिए बंदी को बंदी बना लेता है। तो वह मिथ्या बन्दीकरण का मामला नही होगा।

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शांति भंग रोकने के लिए कानूनी तौर पर गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को या फिर दंगे के समय हिरासत में लिए गए व्यक्ति को मिथ्या बंदीकरण का मामला नही समझा जाएगा।

आत्मरक्षा के लिए या फिर संपत्ति की रक्षा के लिये यदि कोई बल का प्रयोग करते हुए किसी को बंदी बना लिया जाता है। तो सुरक्षा की दृष्टि से की गयी कार्यवाही मिथ्या बन्दीकरण की श्रेणी में सही समझी जायेगी।

कब मिथ्या बंदीकरण या मिथ्या कारावास ( false imprisonment ) माना जाएगा-

निम्नलिखित परिस्थितियों में भी किसी व्यक्ति को अधिकारी के द्वारा मिथ्या बन्दीकरण का आदेश दिया जा सकता है।
यदि किसी अपराधी के भयानक कृत्यों अथवा पागलों से उत्पन्न खतरों के कारण उसका बन्दीकरण किया गया है ।

यदि किसी व्यक्ति का युद्ध अथवा विद्रोह के समय बन्दीकरण किया गया है।

विदेशियों के निष्कासन अथवा विदेशी अपराधियों के समर्पण से सम्बन्धित बन्दीकरण यदि होता है।
यदि आपत्ति कालीन परिस्थितियों में अनिवार्य रूप से बन्दीकरण किया गया हो।

मिथ्या बन्दीकरण के तत्व- इसके निम्नलिखित तत्व है।

व्यक्ति की स्वतंत्रता में बाधक –

मिथ्या बन्दीकरण से सम्बन्धित यदि कोई रुकावट होती है तो यह जरूरी नही है कि यह मिथ्या ही हो यह वास्तविक भी हो सकती है। जैसे –
यदि किसी व्यक्ति के द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति को हाथ द्वारा रोक के रख दिया गया हो जिससे कि स्वतंत्रता की रुकावट हो गयी है।
रुकावट का एक अन्य रूप सृजनात्मक भी हो सकता है। जिसे किसी अधिकारी के द्वारा अपने अधिकार का प्रदर्शन करना आदि शामिल है।

गैर कानूनी रुकावट-

मिथ्या बन्दीकरण किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता पर बिना किसी औचित्य के पूर्ण रूप से रुकावट पैदा करने से होता है भले ही वह इस प्रकार की रुकावट कितने ही कम समय के लिए क्यों न की गयी हो।

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यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को किसी रास्ते पर एक विशेष दिशा में ही उसकी इच्छा के विरुद्ध यात्रा करने को मजबूर करता है। तो उसकी यह कार्यवाही उस व्यक्ति के प्रति मिथ्या बन्दीकरण की श्रेणी मे आएगा। परंतु यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को केवल एक ओर जाने के लिए उसकी इच्छा के विरुद्ध रोकता है। तब वह केवल आंशिक बन्दीकरण (partial Imprisonment) कहा जा सकता है।

आंशिक-बन्दीकरण मिथ्या बन्दीकरण के अन्तर्गत नही आता है। इसका कारण यह है कि ‘मिथ्या बन्दीकरण’ के लिए यह जरूरी है कि किसी व्यक्ति द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति पर उसकी स्वतन्त्रता पर पूर्ण’ रुकावट डाला गया हो। यह वर्ड बनाम जोन्स में न्यायालय द्वारा स्पष्ट किया गया है।

रुकावट संबन्धित प्रमाण –

मिथ्या-बन्दीकरण में वादी को यह सिद्ध करना होगा कि प्रतिवादी द्वारा वास्तविक रूप से शारीरिक रुकावट डाली गयीहै।
इसका एक उदाहरण इस प्रकार है।

मिरिंग बनाम ग्राहम व्याइट एवियेशन कम्पनी लिमिटेड का मुकदमा इसका मुख्य उदाहरण है। इस मुकदमे में एक कम्पनी के दो अधिकारियों द्वारा वादी को चोरी के शक में कम्पनी के आफिस में चलने के लिए कहा गया। जहाँ उसे अनधिकृत रूप से बन्दीकरण कर लिया गया था जो बाद मे न्यायालय द्वारा यह निर्णय लिया गया कि चूँकि वादी के प्रति प्रतिवादी कंपनी का चोरी का शक सही नही था इसके लिए वादी को बलपूर्वक कम्पनी के आफिस में रात भर बन्दी रखना मिथ्या बन्दीकरण समझा जायेगा जिसके लिये कम्पनी को उत्तरदायी माना गया है।

इसका दूसरा उदाहरण इस प्रकार है।

आस्टिन बनाम डार्लिंड में प्रतिवादी की पत्नी ने वादी को एक गंभीर मामले में पकड़कर पुलिस को दे दिया था । तलाशी के बाद मजिस्ट्रेट ने वादी को मुक्त कर दिया। वादी द्वारा प्रतिवादी के विरुद्ध वाद में अपने मिथ्या बन्दीकरण के सम्बन्ध में न्यायालय में दावा दायर किया गया। जिसमे न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि प्रतिवादी जो कि वादी को मजिस्ट्रेट के समक्ष लाने तक के लिये मिथ्या बन्दीकरण किया था और उसने वादी को अकारण ही बन्दी बनवाते हुए उसकी स्वतंत्रता पर पूर्ण रोक लगाने कि कोशिश कि थी जो कि गलत था।

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यदि आपको इन को समझने मे कोई परेशानी आ रही है। या फिर यदि आप इससे संबन्धित कोई सुझाव या जानकारी देना चाहते है।या आप इसमे कुछ जोड़ना चाहते है। तो कृपया हमे कमेंट बॉक्स मे जाकर अपने सुझाव दे सकते है।

हमारी Hindi law notes classes के नाम से video भी अपलोड हो चुकी है तो आप वहा से भी जानकारी ले सकते है। कृपया हमे कमेंट बॉक्स मे जाकर अपने सुझाव दे सकते है।और अगर आपको किसी अन्य पोस्ट के बारे मे जानकारी चाहिए तो आप उससे संबन्धित जानकारी भी ले सकते है।

2 thoughts on “अपकृत्य विधि के अनुसार मिथ्या बंदीकरण या मिथ्या कारावास ( false imprisonment ) क्या होता है?”

    • भीम सिंह बनाम जम्मू और कश्मीर राज्य इस मामले में याचिकाकर्ता, जम्मू-कश्मीर के विधायक को विधानसभा की बैठक में भाग लेना था। उनके विरोधियों ने उन्हें विधानसभा सत्र में जाने से रोकने के लिए कुछ अधिकारियों और पुलिस की मदद से गलत तरीके से गिरफ्तार किया। मजिस्ट्रेट ने पुलिस कस्टडी की याद दिलाने से पहले मजिस्ट्रेट की अदालत में अभियुक्त के उत्पादन की अनिवार्य आवश्यकता के अनुपालन के बिना पुलिस को रिमांड भी दी। विधानसभा सत्र समाप्त होने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता की गलत गिरफ्तारी और नजरबंदी के लिए राज्य को जिम्मेदार ठहराया और रु। का मुआवजा देने का आदेश दिया। याचिकाकर्ता को 50,000 का भुगतान किया जाना है।

      रुदल शाह बनाम बिहार राज्य इस मामले में, याचिकाकर्ता, न्यायालय द्वारा बरी किए जाने के बावजूद कई वर्षों तक जेल में गलत तरीके से सजा काट रहा था। पटना के उच्च न्यायालय ने कहा कि जैसे ही अदालत में कोई व्यक्ति परीक्षण के लिए दोषी पाया जाता है, उसे दोषमुक्त कर दिया जाना चाहिए। इसके बाद कोई भी नजरबंदी गैरकानूनी होगी। राज्य को रुपये का भुगतान करना पड़ा। मुआवजे के रूप में 30,000 रु।

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