IPC 1860 (भारतीय दंड संहिता) के अनुसार धारा 1 से धारा 5 तक का सम्पूर्ण ज्ञान

IPC 1860 (भारतीय दंड संहिता)- भारत एक लोकतान्त्रिक गणराज्य है। इस देश का अपना एक संविधान है। और उसी संविधान के आधार पर इस देश के नागरिकों को समानता, स्वतन्त्रता, सुरक्षा इत्यादि जैसी मूलभूत सुविधाए प्रदान करने हेतु भिन्न भिन्न प्रकार की विधानों का उल्लेख किया गया है। कुछ का निर्माण देश की आजादी से पहले हुआ तह तथा कुछ का निर्माण नए रूप मे एवं कुछ को संसोधन के आधार पर देश मे लागू किया गया है।

उसी क्रम मे भारतीय दंड संहिता अथवा Indian Penal Code 1860 का निर्माण किया गया है। एक लोकतान्त्रिक गणराज्य की सबसे प्रमुख विशेषता ये होनी चाहिए कि उस परिक्षेत्र मे समरसता बनी रहे वहाँ किसी भी प्रकार से कानून एवं व्यवस्था मे कोई हस्तक्षेप एवं किसी भी प्रकार के असंवैधानिक कृत्य को बढ़ावा न मिले और इसी के कारण कुछ संहिताओं का निर्माण किया गया उसी क्रम मे किसी भी प्रकार के आपराधिक कृत्य के निर्धारण एवं उसके तहत दंड का प्रावधान करने हेतु भारतीय दंड संहिता का निर्माण किया गया है। आज हम उसी भारतीय दंड संहिता के धारा 1 से 5 की वृस्तीत व्याख्या करने का प्रयास करेंगे।

भारतीय दंड संहिता का धारा 1- किसी भी कानून अथवा संहिता का धारा एक उस संहिता के नाम और उसके विस्तार क्षेत्र के बारे मे जानकारी प्रदान करता है। उसी प्रकार से भारतीय दंड संहिता को भारतीय दंड संहिता 1860 अथवा अङ्ग्रेज़ी मे Indian Penal Code 1860 के नाम से जाना जाएगा। अब बात आती है इसके विस्तार अथवा प्रवर्तन क्षेत्र की तो 05 अगस्त 2019 से पहले जम्मू और कश्मीर राज्य को छोडकर ये संहिता सम्पूर्ण भारतीय गणराज्य क्षेत्र पर लागू होता था। तब तक जम्मू और कश्मीर राज्य के लिए रनवीर दंड संहिता के अनुसार अपराध की व्याख्या और दंडाधिकर की परिभाषा मान्य होती थी।

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लेकिन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 की समाप्ती के उपरांत भारतीय दंड संहिता का विस्तार सम्पूर्ण भारत पर लागू माना जाएगा इसी प्रकार से 1940 के दशक से पूर्व भारतीय दंड संहिता का विस्तार या प्रवर्तन को किसी भी राजतंत्रिक क्षेत्र मे लागू नहीं माना जाता था।

अब बात आती है भारतीय दंड संहिता के धारा 2, 3 और 4 की तो ये धाराएँ किसी न किसी रूप मे एक दूसरे सी जुड़ी हुई है और और एक दूसरे की व्याख्या का विस्तारित स्वरूप है। तो सबसे पहले हम बात करेंगे भारतीय दंड संहिता के धारा दो की।

धारा 2- भारत के भीतर के अपराध- धारा 2 के तहत वो सभी कृत्य जो कि इस संहिता के अनुसार अपराध की श्रेणी मे आते है उसके लिए हर व्यक्ति इस संहिता के अनुसार उत्तरदायी होगा। यहाँ समझने वाली बात ये है कि इस संहिता के अनुसार इसको केवल उनही नागरिकों पर लागू नहीं माना जाएगा जो कि इस देश के नागरिक है बल्कि वो भी इस संहिता के अनुसार उत्तरदायी माने जायेंगे जो भले ही किसी अन्य देश के नागरिक हो लेकिन उनका अपराध क्षेत्र भारत की परिसीमा के अंतर्गत आता हो। उदाहरण के तौर पर हम प्रमुख Enrica Lexie Case के बारे मे देख सकते है कि एक व्यापारिक पोत जो कि इटली देश का था और उसके देश के दो Sailor के द्वारा Firing करने के कारण केरल के तटीय क्षेत्र पर दो मछुवारों की मृत्यु हो गई थी। इसी कसे के अनुसार विदेशी नागरिक होने के बावजूद भी वो कृत्य भारतीय परिक्षेत्र मे हुआ था अतः उन दोनों पर भारतीय कानून के तहत प्रक्रिया अपनाई गई और उन्हे अपने देश मे प्रत्यरपन हेतु सम्पूर्ण प्रयास किया गया।

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धारा 3- भारतीय परिक्षेत्र के बाहर किए गए अपराध- ये धारा पूर्ण रूप से धारा 2 का Vice versa स्वरूप प्रस्तुत है। इसके अनुसार कोई भी व्यक्ति जो कि भारतीय कानून के तहत बाध्य है और वो कोई अपराध अथवा आपराधिक कृत्य बहरतीय परिक्षेत्र के बाहर सम्पन्न करता है। और यदि उस अपराध का स्वरूप उसी प्रकार से है जिस प्रकार से भारत के भारतीय दंड संहिता के अनरूप अपराध की श्रेणी मे दंडनीय है तो वो व्यक्ति इस अपराध हेतु उत्तर दायी माना जाएगा।

भारतीय दंड संहिता को विस्तारित रूप से व्याख्या करने के लिए धारा 4 का प्रयोग किया गया है। जिसके अनुसार चरणों मे इसे विस्तारित रूप से व्याख्या की जा सकती है जो कि इस प्रकार से है।

धारा 4- नियम1- उस सभी परिस्थितियों मे यदि कोई व्यक्ति भारत देश का नागरिक है और यदि वो कोई कृत्य भारत देश की सीमा से बाहर करता है जो कि भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत अपराध की श्रेणी मे आता है तथा इस संहिता मे उस अपराध के लिए दंड का निर्धारण है तो वो व्यक्ति इस संहिता के तहत उत्तरदायी है।

नियम2- भारतीय कानून के तहत रजिस्टर कोई जहाज अथवा पोत अथवा उसका कोई यात्री एवं कर्मी अगर कोई अपराध को भारतीय सीमा के बाहर सम्पन्न करता है तो वो बहरतीय दंड संहिता के अंतर्गत दंड एवं सजा के प्रति उत्तरदायी होगा।

नियम3- नियम 3 का विस्तार वर्ष 2009 मे हुआ जब जब सूचना प्रद्यौगिकी अधिनियम के लागू होने के उपरांत इसकी आवश्यकता महसूस हुई इसके अंतरगत कोई भी व्यक्ति यदि कोई व्यक्ति, भले वो देश की सीमा के अंदर हो या फिर सीमा के बाहर यदि वो भारत के परिक्षेत्र मे उपस्थित Computer को किसी भी रूप मे उससे सूचना के साथ छेड़छाड़ करने का प्रयास करता है तो वो भारतीय दंड संहिता के अनुसार दंड एवं सजा का भागीदार माना जाएगा।

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धारा5- धारा 5 के अंतर्गत कुछ विधियों को एसके अंतर्गत न रखने की बात काही गई है जिसके अनुसार यदि भारतीय सेवा के अनतर गत आने वाले कर्मचारी या फिर अधिकारी, सैनिक इत्यादि यदि कोई षड्यंत्र अथवा देश के प्रति गद्दारी अथवा राष्ट्रद्रोह का प्रयास करते है तो उन अपराधों को लिए उन्हे अलग रूप से दंड देने की प्रक्रिया का प्रावधान है उदाहरण किसी सेना के अधिकारी अथवा सैनिक द्वारा किए गए षड्यंत्र अथवा विद्रोह के खिलाफ उसके प्रति मार्शल कोर्ट मे कारवाई करने की बात काही गई है।

उपरोक्त विवरणो के जरिये हमने भारतीय दंड संहिता के धारा 1 से 5 तक की विस्तारित व्याख्या करने का प्रयास किया है जो कि IPC के अध्याय 1 के द्वारा वर्णित है इन धाराओं की आधिकारिक परिभाषा हेतु आप लोग IPC 1860 का Bare Act का भी अध्ययन कर सकते है। आने वाले लेखों के जरिये हम IPC के अन्य अध्यायों और उसके अंतर्गत आने वाले धाराओं की व्याख्या प्रस्तुत करेंगे।

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