जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे भारतीय दंड संहिता तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धराये नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धराये समझने मे आसानी होगी।
धारा 132
इस धारा के अनुसार जो कोई भारत सरकार की सेना और नौसेना या वायुसेना के किसी भी अधिकारी, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा विद्रोह किए जाने का दुष्प्रेरण मे जिसके परिणामस्वरूप विद्रोह हो जाए या फिर जो विद्रोह करेगा तो उसे मॄत्युदण्ड या आजीवन कारावास या किसी एक अवधि के लिए कारावास जिसे अधिकतम दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। और साथ ही आर्थिक दण्ड भी देना पड़ेगा।इसमे निम्न को शामिल किया जाता है। जिसमे विद्रोह का दुष्प्रेरण जिसके परिणामस्वरूप विद्रोह हो जाए।
सजा – मॄत्युदण्ड या आजीवन कारावास या दस वर्ष तक कारावास और आर्थिक दण्ड।
यह एक गैर-जमानत संज्ञेय अपराध है। और यह सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है
यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं होता है।
धारा 133
इस धारा के अनुसार जो भी कोई भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के किसी अधिकारी, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा किसी भी वरिष्ठ अधिकारी जो कि अपने पद के निष्पादन में है। यदि उन पर हमले का दुष्प्रेरण करेगा तो उसे किसी भी अवधि के लिए कारावास जिसे तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है और उसको दण्डित किया जाएगा और साथ ही वह आर्थिक दण्ड देने के लिए भी उत्तरदायी होगा।
इसके निम्न तत्व होते है। किसी भारतीय सरकार की नौसेना, वायुसेना के किसी व्यक्ति द्वारा भारतीय सरकार के किसी भी नौसेना, वायुसेना के किसी वरिष्ठ अधिकारी पर हमले का दुष्प्रेरण करता है।
इस संहिता के अंतर्गत कारावास की सजा का प्रावधान किया गया है। जिसके अनुसार जिसकी समय सीमा को 3 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। और इस अपराध में आर्थिक दंड का प्रावधान किया गया है। जो कि न्यायालय आरोप की गंभीरता और आरोपी के इतिहास के अनुसार निर्धारित करता है।
धारा 134
इस धारा के अनुसार जो कोई भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के अधिकारी, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा किसी वरिष्ठ अधिकारी पर जब कि वह अधिकारी अपने पद-निष्पादन में हो रहे हो या हमले का दुष्प्रेरण हो रहा हो जिसके परिणामस्वरूप हमला किया जाए। तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है से दण्डित किया जा सकता है। और साथ ही साथ वह आर्थिक दण्ड के लिए भी उत्तरदायी होगा।
इसके अंतर्गत निम्न अपराध आते है।
हमले का दुष्प्रेरण जिसके परिणामस्वरूप हमला किया जाए ।
जिसमे सात वर्ष कारावास और आर्थिक दण्डदिया जाता है।
यह एक गैर-जमानती संज्ञेय अपराध है। और यह प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।
यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।
धारा 135
इस धारा के अनुसार जो भी कोई भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के किसी अधिकारी, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक को कर्तव्य छोड़कर भागने के लिए दुष्प्रेरित करेगा, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास जिसे दो वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या आर्थिक दण्ड, या दोनों से दण्डित किया जा सकता है। इसके निम्न तत्व है।
सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा परित्याग का दुष्प्रेरण।
सजा – दो वर्ष कारावास या आर्थिक दण्ड या दोनों।
यह एक जमानती, संज्ञेय अपराध है। और किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।
यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।
धारा 136
इस धारा के अनुसार अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी आर्मी, नेवी, एयर फोर्स के सैनिक या कोई सेना का ऑफिसर जो ड्यूटी पर से भाग जाते हैं । या अपने कतर्व्य का पालन नहीं करते हैं। ऐसे सैनिक या अधिकारी को जो छिपायेगा या आश्रय देगा वह धारा 136 के अंतर्गत दोषी सिद्ध होगा।
इस धारा के अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं होते हैं, यह अपराध संज्ञेय एवं जमानतीय अपराध होते हैं। इनकी सुनवाई का अधिकार किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट को होता है। सजा-इस अपराध के लिए दो वर्ष की कारावास या जुर्माना या दोनो से दाण्डित किया जा सकता है।
धारा 137
भारतीय दंड संहिता की धारा 137 के अनुसार किसी ऐसे वाणिज्यिक जलयान का, जिस पर भारत सरकार की सेना नौ सेना या वायु सेना का कोई अभित्याजक छिपा हुआ हो या मास्टर या भारसाधक व्यक्ति वे ऐसे छिपने के संबंध में अनभिज्ञ हो और ऐसी स्थित मे यह दंडनीय होगा जो पांच सौ रुपए से अधिक नहीं होगी। और यदि उसे ऐसे छिपने का ज्ञान हो सकता था किंतु केवल इस कारण नहीं हुआ कि ऐसे मास्टर या भारसाधक व्यक्ति के नाते उसके कर्तव्य में कुछ उपेक्षा हुई, या उस जलयान पर अनुशासन का कुछ अभाव था । ऐसे अपराधों को कोई भी मजिस्ट्रेट सुन सकता है। पुलिस इस धारा के आरोपी को कोर्ट से वारंट लेकर ही गिरफ्तार कर सकती हैं।
धारा 138
इस धारा के अनुसार सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा अनधीनता के कार्य का दुष्प्रेरण किया जाना साबित होता है।
जो कोई ऐसी बात का दुष्प्रेरण करेगा जिसे कि वह भारत सरकार की सेना और नौ सेना या वायु सेना के किसी आफिसर, सैनिक, भारत सरकार की सेना और नौ सेना या वायु सेना द्वारा अनधीनता का कार्य जानता हो। यदि अनधीनता का ऐसा कार्य उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप किया जाए। तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दंडित किया जा सकता है। धारा 138 किये गए अपराध के लिए सजा को निर्धारित किया गया हैं |
जो इस प्रकार है – किसी अधिकारी, सिपाही, नाविक या एयरमैन द्वारा अपमान का कार्य करना, उसको 6 मास कारावास या आर्थिक दण्ड या दोनों से दण्डित किया जा सकता है |इसमे निम्न तत्व को शामिल किया गया है। भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के किसी अधिकारी, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक को अवज्ञाकारिता के कार्य के लिए दुष्प्रेरित करना, यदि अवज्ञा उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप हुई हो।
सजा – 6 मास कारावास या आर्थिक दण्ड या दोनों।
यह एक जमानती संघेय अपराध है और किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।
यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है। उस अपराध को एक जमानती अपराध बताया गया है | यहाँ आपको मालूम होना चाहिए कि जमानतीय अपराध होने पर इसमें जमानत मिल जाती है।
यदि आपको इन धारा को समझने मे कोई परेशानी आ रही है। या फिर यदि आप इससे संबन्धित कोई सुझाव या जानकारी देना चाहते है।या आप इसमे कुछ जोड़ना चाहते है।या फिर आपको इन धारा मे कोई त्रुटि दिख रही है तो उसके सुधार हेतु भी आप अपने सुझाव भी भेज सकते है।
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