भारतीय दंड संहिता के अनुसार धारा 16 से 25 तक का विस्तृत अध्ययन

जैसा की हम आपको भारतीय दंड संहिता के अनुसार धारा 1 से 15 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है। आपको भारतीय दंड संहिता के अनुसार धारा 16 से 25  तक समझने के लिए सबसे पहले उसको पढ़ना होगा जो कि आप hindilawnotes के टैग से देख सकते है।

अब हम आपको भारतीय दंड संहिता के अनुसार धारा 16 से 25  तक का विस्तृत अध्ययन कराने जा रहे है।

धारा 16

यह गवर्नमेंट ऑफ इंडिया की परिभाषा को बताती है। परंतु इनको विधि अनुकूलन आदेश 1937 द्वारा निरस्त कर दिया गया है। इसलिए आपको इसके बारे मे जादा जानकारी लेने की आवश्यकता नही है।

धारा 17

यह सरकार को परिभाषित करता है। इसमे केंद्र और राज्य सरकार को शामिल करते है। सरकार शब्द जहा उपयोग मे आएगा वह केंद्र सरकार और राज्य सरकार आएगा।

धारा 18

यह भारत शब्द को परिभाषित करती है। यह भारत के राज्य क्षेत्र को बताती है यह जम्मू कश्मीर को अलग करती है जो इसमे सम्मलित नही की जाती है क्योकि वह रणवीर पीनल कोड़ लागू होता है। इसको छोरकर बाकी सभी राज्य भारत मे शामिल किए जाते है। अनुच्छेद 370 हटा देने से जम्मू कश्मीर को विशेस राज्य का दर्जा हटा दिया गया है। परंतु अभी विधि मे कोई संशोधन नही हुआ है।

धारा 19

यह न्यायाधीश के बारे मे बताया गया है। न्यायाधीश शब्द हर एक व्यक्ति के लिए प्रयोग किया जा सकता है जो उस पद पर हो। वह व्यक्ति का भी घोटक है चाहे वह सिविल कोर्ट मे हो या अन्य जगह जहा उनके निर्णय को अंतिम मान लिया जाता है। जिनके पास निर्णय देने की क्षमता होती है वह न्यायाधीश हो सकते है।

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जैसे पंचायत भी न्यायाधीश की श्रेड़ी मे आते है। जिंका निर्णय अंतिम होता है और उसपर अपील नही किया जा सकता है और जो व्यक्ति ऐसे निर्णय देने के लिए विधि द्वारा सशक्त हो उसको भी न्यायाधीश माना जा सकता है।

धारा 20

 यह न्यायायालय के बारे मे बताती है। न्यायालय शब्द का उस न्यायधीश का जिसको अकेले कार्य करने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो या निकाय को विधि द्वारा सशक्त किया गया हो उस का उपयोग कर निर्णय को सुनाने के लिए सशक्त हो न्यायालय कहलाता है।

धारा 21

लोक सेवक को बताती है। इससे संबन्धित लोक सेवक के अंतर्गत आते है।

भारत की सेना ,नौ सेना ,वायु सेना का अधिकारी

हर न्यायाधीश जिसमे वह व्यक्ति भी सम्मलित है जिसको विधि द्वारा निर्णय देने का अधिकार है।

न्यायायालय का हर अधिकारी जैसे रिसीवर ,कमिसनर आदि सामिल है। जिंका कर्तव्य है की वह विधि का अन्वेषन करे ,रिपोर्ट शामिल करे भार संभाले या शपद ग्रहण कराये या निर्वाचन करे या न्यायालय मे व्यवस्था करे जिसको न्यायालय द्वारा विशेष रूप से दिया गया।

न्यायालय की सहायता करने वाला हर व्यक्ति चाहे वह संगठन का सदस्य हो या पंचायत ,सरपंच ,सचिव ,पंच आदि आते है।

हर मध्यस्थ व अन्य व्यक्ति जिसको विधि द्वारा रिपोर्ट देने ,मामले का निपटारा करने के लिए नियुक्त किया गया।

हर व्यक्ति जो ऐसे पद को धारण करता है जो किसी को परिरोध मे रख सकता है जैसे पुलिस

सरकार का प्रतेय्क अधिकारी जिसका कर्तव्य हो कि वह अपराध का निवारण करे। अपराधियो को न्याय के लिए उपस्थित करे।

प्रतेय्क वह व्यक्ति जो सरकार के रूप मे किसी संपत्ति को ग्रहण करे व नीलाम करे या सरकार कि तरफ से कोई एग्रीमेंट करे या अन्वेषन करे और धन संबंधी दस्तावेज़ तैयार करे या अधि प्रमाणित करे और कानून को तोड़ने से रोकने का अधिकार हो।

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वह व्यक्ति जिसको जिले के धर्म निरपेक्ष संपत्ति को ग्रहण करे , व नीलाम करे या सरकार कि तरफ से कोई एग्रीमेंट करे या अन्वेषन करे, ग्राम व शहर के लोगो के लिए उसको दे और अधि प्रमाणित करे। दस्तावेज़ तैयार करे।

निर्वाचन संबन्धित कार्य करने वाले।

प्रत्येक व्यक्ति जो सरकार का सेवक हो और सरकार द्वारा वेतन प्राप्त करता हो।

यदि कोई व्यक्ति सरकारी कंपनी मे कार्य करता हो और सेवक हो तो वह लोक सेवक कहलाते है।

धारा 22

चल संपत्ति के बारे मे बताते है इसमे मूर्ति संपत्ति आती है परंतु जो भूमिगत हो या जो जमी हुई हो वह नही आती है। ऐसे संपत्ति जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है जो चोरी योग्य हो सकती है।

धारा 23

यह सदोष अभिलाभ को बताती है। ऐसे संपत्ति जिसको वैध रूप से संपत्ति का अधिकारी नही है और लाभ प्राप्त नही कर रहा है तो ऐसे लाभ को सदोष लाभ कहा जा सकता है।

सदोष हानि

यह ऐसे संपत्ति जो वैध रूप से हकदार व्यक्ति के कब्जे मे हो और उसको उससे हानि हुई हो और विधि विरुद्ध साधनो के द्वारा हानि हुई हो।

यह तब कहा जा सकता है कि जब सदोष अलग होने के बाद जब उसके संपत्ति से बंचित कर दिया जाय।

धारा 24

बेईमानी को इसमे बताया गया है। जो इस आशय से कार्य करता है कि किसी व्यक्ति को सदोष लाभ या दूसरे को सदोष हानि दे सके तो यह बेईमानी कहलाएगा।

धारा 25

कपट

वैसे इसकी परिभाषा स्पस्ट रूप से कही नही बतायी गयी है फिर भी आईपीसी के द्वारा दी गयी कपट को बताने का प्रयास कर रहे है।

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यदि कोई व्यक्ति कपट करने के आशय से कोई कार्य करता है तो वह कपट मे आता है। इसमे धोखा देने को महत्वपूर्ण माना गया है। इसमे धोखे से हानि होती है।

यदि कपट और बाईमानी को अलग करना हो तो यह समझना अति आवश्यक है कि कपट मे धोखे से हानि होती है जबकि बाईमानी मे ऐसा आवश्यक नही है। इसमे यह भी कहा गया है कि किसी व्यक्ति को सदोष लाभ या दूसरे को सदोष हानि दे सके तो यह बेईमानी कहलाएगा।

इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको भारतीय दंड संहिता को बताने का प्रयास कर रहे है। यदि इसमे कोई त्रुटि हो रही हो या यदि आप इसमे कुछ जोड़ना चाहते है या इससे संबन्धित अपने विचार आप हमे कमेंट करके बता सकते है।

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