भारतीय दंड संहिता धारा 26 से 33 तक का विस्तृत अध्ययन


जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे हमने भारतीय दंड संहिता धारा 1 से 25 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धराये नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धराये समझने मे आसानी होगी।

अब हम भारतीय दंड संहिता धारा 26 से 33   तक का विस्तृत अध्ययन करेंगे –

धारा 26

यह विस्वास के कारण को बताती है। जब कोई साक्ष्य उपस्थित नही है तो वह विस्वास का कारण नही हो सकता है। विस्वास का कोई न कोई कारण होना आवश्यक है।

उदाहरण

जब कोई लाइसैन्स धारी स्टैम्प को खरीदता है और विक्रेता के पास से जाली लाइसैन्स प्राप्त होता है। तब वह यह नही कह सकता कि उसने कोषालय से खरीदा था केवल यह कह देना वैध नही होगा उसके लिए उसको खरीद रजिस्टर को साक्ष्य के रूप मे दिखाना होगा। विस्वास तभी होगा जब कोई रजिस्टर देखेगा।

धारा 27

पत्नी ,लिपिक ,सेवक के कब्जे मे संपत्ति

 जब कोई संपत्ति व्यक्ति के पत्नी ,लिपिक ,सेवक के कब्जे मे है तो ऐसा समझा जाएगा की वह संपत्ति उस व्यक्ति के कब्जे मे है।

लिपिक या सेवक अस्थाई रूप से या किसी विसिस्ट घटना से संबन्धित भी इस धारा मे आएगा। इस प्रकार किसी की उप पत्नी , रख्हैयल भी इसमे शामिल है।

धारा 28

कूटकरण को बताती है।

जो व्यक्ति एक चीज को दूसरे चीज के समान बनाया जाता है कि दूसरा व्यक्ति उसको वही चीज समझ कर ले ले यह कूटकरण कहलाता है।

इसमे सबसे मुख्य यह बात है कि यह इस आशय से किया जाता है कि वह चीज समान लगे। इसमे जरूरी नही है कि सामान बिलकुल वैसे ही हो परंतु यह इस आशय से किया जाता है कि वह चीज समान लगे।

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यदि कोई चीज एक जैसे बनाई जाती है तो ऐसा समझा जाएगा कि वह कूटकरण के लिए ही बनायी गयी है। वरना उसको सिद्ध करना आवश्यक होगा।

धारा 29

दस्तावेज़

दस्तावेज़ किसी भी विषय का घोटक है जिसको किसी पदार्थ पर अंको ,चिन्हो के साधन द्वारा या एक से अधिक साधन द्वारा अभिव्यक्त या वर्णित किया गया हो।

जिसको उस विषय पर साक्ष्य के रूप मे प्रयोग किया जा सकता है या प्रयोग किया जा रहा हो। यह इस पर निर्भर करता है कि यह किस पदार्थ पर अंको ,चिन्हो के साधन द्वारा या एक से अधिक साधन द्वारा अभिव्यक्त या वर्णित किया गया हो और न्यायालय इसको साक्ष्य के रूप मे मान रही है या नही।

किसी संविदा पर उपबंध करने वाला कोई लेख दस्तावेज़ है।

बैंक मे दिया गया चेक दस्तावेज़ है।

मानचित्र या रेखांक जिसको साक्ष्य के रूप मे लाया जा सके दस्तावेज़ है।

कोई भी पत्र या लेख जिसमे कुछ अंतर्विस्ट हो दस्तावेज़ कहा जा सकेगा।

अक्षरो ,अंको या चिन्हो द्वारा यदि कुछ अभिव्यक्त किया गया हो या ऐसा लगता है कि इससे कुछ अभिव्यक्त किया गया है भले वह कोई अभिव्यक्त न हो दस्तावेज़ कहलाता है।

उदाहरण

क एक विनिमय पत्र के पीठ पर हस्ताक्षर कर देता है और सी को दे देता है। भले क का आशय भुगतान का न हो परंतु इसका मलतब भुगतान से होता है, और इस प्रकार कहा जा सकता है कि क ने भुगतान करने को कहा है।

धारा 30

यह मूल्यवान प्रतिभूति को बताता है। मूल्यवान प्रतिभूति मे रजिस्टर डॉकयुमेंट ,करार नामा ,लेनदेन का विवरण आदि से संबन्धित को मूल्यवान प्रतिभूति कहते है। सिर्फ ओरिजिनल कॉपी को ही मूल्यवान प्रतिभूति मानी जाती है। किसी भी दस्तावेज़ की कॉपी मूल्यवान प्रतिभूति नही होती है। इससे कोई अधिकार मिलता है या हटाया जाता है या इसका विस्तार हो या नियमित किया जाये जिससे कोई व्यक्ति को अधिकार दिया गया हो। या अधिकार लिया गया हो। कोई भी दस्तावेज़ या अनुबंध पत्र जो क्रय विक्रय से संबन्धित हो वह मूल्यवान प्रतिभूति हो सकता है।

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विवाह विच्छेद का प्रपत्र

कर निर्धारण दस्तावेज़

लॉटरी का टिकिट

या अन्य दस्तावेज़ जो अधिकार मे परिवर्तन करते हो अधिकार देते या छिनते है तो वह मूल्यवान प्रतिभूति होते है।

धारा 31

यह बिल शब्द को परिभाषित करती है। यह किसी भी वशीयत के दस्तावेज़ का घोटक होता है। इसको वशीयत के रूप मे समझा जाता है।जब कोई व्यक्ति अपनी इच्छा अनुसार अपनी संपात्ति को अपने मरने के बाद किसी और व्यक्ति को हस्तांतरित कर देते है तो वह वशीयत या बिल कहलाता है।

धारा 32

कार्यो को निर्देश करने को शब्दो मे अवैध लोप आता है। इसमे लोप  आता है लोप यानि की किसी कार्य को नही करना। इस संहिता के हर भाग मे कार्यो को नही करने का आशय लोप भी आता है। जैसे किसी व्यक्ति का दायित्व उस कार्य को करने का है परंतु वह उस कार्य को नही करता तो वह लोप के अंतर्गत आता है।

उदाहरण

पुलिस किसी व्यक्ति को अपराध उगलवाने के लिए मार पीट कर रहा था बगल मे दूसरे पुलिस वह मौजूद थी परंतु उसने मना नही किया यानि की वह अवैध लोप किया है और धारा 32 के अनुसार दोषी होगा।

धारा 33

यह कार्य या लोप को बताती है। शब्द कार्यावली का घोटक उसी प्रकार है जैसे कोई एक कार्य का होता है। यदि एक व्यक्ति किसी को एक बार चाकू मारे या कई बार वह एक बार ही किसी व्यक्ति को मारना कहलाएगा। अर्थात एक लोप या कई बार लोप वही कार्य लोप कहलाता है।

लोप शब्द लोपवली का घोटक उसी प्रकार है जैसे एक लोप का जैसे ओमप्रकाश बनाम पंजाब राज्य का है इसमे ससुराल वालों ने बहू को खाना न देकर कमरे मे बंद रखा उनका उद्देश्य बहू को मारना था कुछ दिन बाद वह लड़की भाग कर हॉस्पिटल पाहुची और शिकायत की और ससुराल वाले इसके दोषी पाये गए।

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आज हमने आपको भारतीय दंड संहिता धारा 26 से 33 तक का विस्तृत अध्ययन कराया है। यदि आप इससे संबन्धित कोई सुझाव या जानकारी देना चाहते है।या आप इसमे कुछ जोड़ना चाहते है। या इससे संबन्धित कोई और सुझाव आप हमे देना चाहते है।  तो कृपया हमे कमेंट बॉक्स मे जाकर अपने सुझाव दे सकते है।

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