भारतीय दंड संहिता धारा 73 से 81 तक का विस्तृत अध्ययन


जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे भारतीय दंड संहिता  धारा 72 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराये नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ ली जिये जिससे आपको आगे की धाराये समझने मे आसानी होगी।

धारा 73

एकांत परिरोध को यह बताता है। इस धारा के अनुसार जो परिभाषा दी गयी है उसमे एकांत परिरोध को बताया गया है ।यह किस प्रकार दिया जा सकता है।  यदि कोई व्यक्ति ऐसे दंड के लिए दंडित किया गया है तो न्यायालय को एकांत कारावास या कठिन दंड के लिए शक्ति  है तो न्यायालय यह आदेश कर सकेगा कि उस व्यक्ति को 3 माह का एकांत परिरोध दे सकती है। जो धारा के अनुसार दंडित किया गया हो। यदि कारावास कि अवधि  6 माह से अधिक न ओ तो 1 माह का एकांत कारावास दिया जाएगा।

यदि कारावास कि अवधि  6 माह से अधिक हो  और तो 1 वर्ष से कम हो तो 2  माह  का एकांत कारावास दिया जाएगा।

यदि कारावास कि अवधि 1 वर्ष से अधिक हो तो 3 माह का एकांत कारावास दिया जाएगा।

धारा 74

यह एकांत कारावास कि अवधि को निश्चित किया गया है। एकांत परिरोध को लागू करने मे 14 दिन से अधिक एक समय मे एकांत परिरोध मे  नही रखा जाएगा।

यदि एकांत कारावास 3 माह से अधिक है तो 1 महीने मे उसको 7 दिन से जादा तक एक साथ नही रखा जाएगा। यदि एकांत परिरोध और काला अवधि है तो एकांत परिरोध मे कम से कम रखा जाएगा।

धारा 75

इस धारा मे बताया गया है कि पूर्व दोष सिद्ध करने के पश्चात अध्याय 12 जिसमे सिक्कों और स्टंप के कूटनीतिक को बताया गया  और अध्याय 17 जिसमे संपत्ति से संबन्धित दुरुपयोग  से दंडित हुआ है जो 3 वर्ष से अधिक समय का है और वह पुनः वैसा अपराध किया है तो उसको आजीवन कारावास या 10 साल कि सजा हो सकती है।

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भारतीय दंड संहिता कि इस धारा के तत्व अपराध अध्याय 12 और 17 के अंतर्गत आता है।

इस अपराध के लिए पूर्व दोष सिद्ध किया जा चुका हो।

दोबारा किए जाने वाला अपराध पहले अपराध कि तरह होना चाहिए।

यह धारा तब लागू नही होती जब अपराध करने का प्रयास किया गया हो।

धारा 76

साधारण अपवाद

इसके अंतर्गत यदि किसी व्यक्ति के द्वारा किए गए कार्यो से घटना दुर्घटना हो जाती है तो इसको अपराध नही माना जाता है।

यह धारा 76 से 106  तक आता है इसके अंतर्गत कोई कार्य किया जाएगा तो वह साधारण अपराध माना जाता है।

इस धारा मे तथ्य और विधि कि भूल बताई गयी है।

इस धारा मे बताया गया है कि तथ्य कि भूल को स्वीकार किया जा सकता है पर विधि का भूल नही होता । जो कोई बात अपराध नही है जो किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाये जो विधि द्वारा अबाध हो विधि के द्वारा नही बल्कि तथ्य के द्वारा । वह स्वभाव पूर्वक विश्वास करता हो तो वह दंडित नही किया जाएगा।

यदि कोई सैनिक वारिस्थ अधिकारी के आदेश पर भीड़ पर गोली चलाता है तो वह अपराधी नही है।

धारा 77

यह धारा बताती है। कि न्यायालय का आदेश अपराध नही होता है। न्यायाधीश का न्यायिक कार्य यदि कोई न्यायाधीश कर रहा है तो वह अपराध नही माना जाएगा जो ऐसे शक्ति का प्रयोग कर रहा है जो विधि पूर्ण है यह अपराध नही माना जाएगा।

न्यायाधीश के द्वारा किसी को मृतु दंड दिया जाए तो वह अपराध नही है।

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धारा 78

न्यायालय के आदेश के अनुसार किए गए कार्य अपराध नही है। यदि किसी को फाँसी कि सजा दी जा रही है और उसमे कई व्यक्ति शामिल है तो वह अपराध नही माना जाएगा। यदि न्यायालय के निर्णय के प्रवर्तन मे कराया जा रहा हो तो वह अपराध नही है भले ही न्यायलय को अधिकारिता नही रही हो पर व्यक्ति  को सद्भाव पूर्वक यह विस्वाश  था कि न्यायालय को यह अधकारिता थी।

धारा 79

यह धारा बताती है कि कि यदि किसी व्यक्ति को यह ज्ञात है कि यह विधि के अनुरूप किसी का कार्य करता है तो वह अपराध नही है । वह विधि द्वारा न्यायचित हो। यह तथ्य कि भूल के कारण ऐसा किया गया है तो कोई अपराध नही बल्कि विधि के द्वारा नही ।

पर व्यक्ति  को सद्भाव पूर्वक यह विश्वास था कि न्यायालय को यह अधकारिता थी।

यदि कोई व्यक्ति किसी अपराधी को मार रहा था और दूसरा व्यक्ति यह जनता था कि किसी को मारना विधि के अनुरूप गलत है और उसको रोक देता है तो यह कार्य सद्भाव पूर्वक किया गया है इसलिए यह अपराध नही है।

धारा 80

इस धारा मे यह बताया गया है कि कोई विधिपूर्ण कार्य करने मे दुर्घटना हो जाती है तो वह इस अपवाद मे आएगा और अपराध नही माना जाएगा ।

जैसे कोई व्यक्ति कुल्हाड़ी से लकड़ी काट रहा था और कुल्हाड़ी का फल निकल कर दूसरे को लग लगा जिससे वह मर गया तो यह दुर्घटना माना जाएगा ।

कोई बात अपराध नही है जो दुर्घटना या दुर्भाग्य से या बिना आपराधिक आशय या ज्ञान के बिना उचित साधनो के द्वारा उचित रूप से विधि पूर्वक कार्य किया गया है तो वह अपराध  नही है।

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धारा 81

भारतीय दंड संहिता कि धारा 81 यह बताती है कि कार्य जिससे हानि हो सकती है और वह अन्य हानि से बचने के लिए किया गया है और वह आपराधिक आशय के बिना किया गया हो।

जैसे कोई समुद्र मे जहाज लेकर जा रहा है वह बीच मे पहाड़ आ गया और दिशा परिवर्तन करने कर एक नाव आ जा रही है जिसमे 2 लोग है जिससे वह मर सकते है परंतु वह जहाज कि दिशा नही बदलेगा तो कई लोग मर जाएंगे तो दिशा परिवर्तन करना अपराध नही है।

भारतीय दंड संहिता की कई धाराये अब तक बता चुके है यदि आपने यह धराये नही पढ़ी है तो पहले आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराये समझने मे आसानी होगी।

यदि आपको इन धाराओ को समझने मे कोई परेशानी आ रही है। या फिर यदि आप इससे संबन्धित कोई सुझाव या जानकारी देना चाहते है।या आप इसमे कुछ जोड़ना चाहते है या फिर आपको इन धाराओ मे कोई त्रुटि दिख रही है तो उसके सुधार हेतु भी आप अपने सुझाव भी भेज सकते है।

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