जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा इससे पहले की पोस्ट मे भारतीय दंड संहिता धारा 299 तक का विस्तृत अध्ययन करा चुके है यदि आपने यह धाराएं नहीं पढ़ी तो आप उनको पढ़ लीजिये जिससे आपको आगे की धाराएं समझने में आसानी होगी।
धारा 300
इस धारा के अनुसार इसके पश्चात अपवादित मामलों को छोड़कर अन्य आपराधिक गैर इरादतन मानव वध हत्या है। यदि ऐसा कोई कार्य जिसके द्वारा मॄत्यु कारित की गई हो या मॄत्यु कारित करने के आशय से किया गया हो। अथवा
यदि कोई कार्य ऐसी शारीरिक क्षति पहुँचाने के आशय से किया गया हो जिससे उस व्यक्ति की, जिसको क्षति पहुँचाई गई है, मॄत्यु होना सम्भाव्य हो, अथवा
यदि वह कार्य किसी व्यक्ति को शारीरिक क्षति पहुँचाने के आशय से किया गया हो और वह आशयित शारीरिक क्षति, प्रकॄति के मामूली अनुक्रम में मॄत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त हो, अथवा
यदि कार्य करने वाला कोई व्यक्ति यह जानता हो कि कार्य इतना आसन्न संकट प्रद है कि मॄत्यु कारित होने की पूरी संभावना है । या ऐसी शारीरिक क्षति कारित होगी जिससे मॄत्यु होना संभाव्य है । और वह मॄत्यु कारित करने या पूर्वकथित रूप की क्षति पहुँचाने का जोखिम उठाने के लिए बिना किसी क्षमायाचना के ऐसा कार्य करे ।
अपवाद -आपराधिक मानव वध कब हत्या नहीं है। –
आपराधिक मानव वध हत्या नहीं होता है। यदि अपराधी उस समय जब कि वह गम्भीर और अचानक प्रकोपन से आत्म-संयम की शक्ति से वंचित हो जाता है। उस व्यक्ति की, जिसने कि वह प्रकोपन दिया था। तथा जिसमे मृत्यु कारित करे या किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु भूल या दुर्घटनावश कारित करे।
यह कि वह प्रकोपन किसी व्यक्ति का वध करने या अपहानि करने के लिए अपराधी द्वारा प्रतिहेतु के रूप में इप्सित न हो या स्वेच्छया प्रकोपित न हो।
यह कि वह प्रकोपन किसी ऐसी बात द्वारा न दिया गया हो जो विधि के पालन में या लोक सेवक द्वारा ऐसे लोक सेवक की शक्तियों के विधिपूर्ण प्रयोग में की गई हो।
यह कि वह प्रकोपन किसी ऐसी बात द्वारा न दिया गया हो, जो प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के विधिपूर्ण प्रयोग में की गई हो।
राम के द्वारा दिए गए प्रकोपन के कारण प्रदीप्त आवेश के असर में श्याम का, जो राम का शिशु है, राम साशय वध करता है। यह हत्या है। क्योंकि प्रकोपन उस शिशु द्वारा नहीं दिया गया था और उस शिशु की मृत्यु उस प्रकोपन से किए गए कार्य को करने में दुर्घटना या दुर्भाग्य से नहीं हुई है।
राम द्वारा, जो एक बालफह, क विधिपूर्वक गिरफ्तार किया जाता है। उस गिरफ्तारी के कारण राम को अचानक और ताव आवशआ जाता हआर वह श्याम का वध कर देता है। यह हत्या है, क्योंकि प्रकोपन ऐसी बात द्वारा दिया गया था, जो एक लोक सेवक द्वारा उसकी शक्ति के प्रयोग में की गयी थी।
धारा 301
इस धारा के अनुसार जिस व्यक्ति की मॄत्यु कारित करने का आशय था। उससे भिन्न व्यक्ति की मॄत्यु करके आपराधिक मानव वध करना शामिल होता है।
यदि कोई व्यक्ति कोई ऐसी बात करके जिसका आशय मॄत्यु कारित करना हो। या जिससे वह जानता हो कि मॄत्यु कारित होना सम्भाव्य होता है। तथा किसी ऐसे व्यक्ति की मॄत्यु कारित करकेतथा जिसकी मॄत्यु कारित करने का न तो उसका आशय हो और न वह यह संभाव्य जानता हो कि वह उसकी मॄत्यु कारित करेगा। तथा आपराधिक मानव वध करे। तो अपराधी द्वारा किया गया आपराधिक मानव वध उस भांति का होगा जिस भांति का वह होताहै। यदि वह उस व्यक्ति की मॄत्यु कारित करता जिसकी मॄत्यु कारित करना उसका आशय था या वह जानता था कि उस व्यक्ति की मॄत्यु कारित होना सम्भाव्य है।
धारा 302
इस धारा के अनुसार जो भी कोई किसी व्यक्ति की हत्या करता है। तो उसे मृत्यु दंड या आजीवन कारावास और साथ ही आर्थिक दंड से दंडित किया जाएगा।यह एक गैर-जमानती संज्ञेय अपराध है। और सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है। यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।
हत्या की आवश्यक सामग्री में शामिल हैं:
इरादा: मौत का कारण बनने का इरादा सपस्ट होना चाहिए
मौत का कारण: अधिनियम को इस ज्ञान के साथ किया जाना चाहिए कि अधिनियम दूसरे की मृत्यु का कारण बन सकता है।
शारीरिक चोट: ऐसी शारीरिक चोट लगने का इरादा होना चाहिए जिससे मृत्यु होने की संभावना हो।
धारा 303
इस धारा के अनुसार आजीवन सिद्धदोष द्वारा हत्या के लिए दंड को बताया गया है।
जो भी कोई आजीवन कारावास के दण्डादेश के अधीन होते हुए हत्या करेगा। तो उसे मृत्यु दण्ड से दण्डित किया जाएगा। यह एक गैर– जमानती, संज्ञेय, अपराध है और सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है। यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।
धारा 304
इस धारा के अनुसार उपेक्षा द्वारा मृत्यु कारित करना बताया गया है। जो व्यक्ति तेजी व लापरवाही से कोई भी काम करते हुए किसी व्यक्ति की मृत्यु कर दे तो ऐसे स्थित मे उसे दो साल तक की सजा या जुर्माना या सजा और जुर्माना दोनों से दण्डित किया जाएगा। परंतु यह मृत्यु इरादतन न की गई हो बल्कि तेजी व लापरवाही द्वारा घटित हुई हो।
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